निरोला-गंगाडी , सरोलों और गंगाडी ब्राह्मणों के बीच अंतर किस प्रकार हुआ ?
चांदपुर गढ़ के समय राजपूत जमाई राजा के साथ आये गौड़ ब्राह्मणों ने पुराने ब्राह्मण मंत्रियों की जगह ले ली .... ये पुराने ब्राह्मण मंत्री पूर्व में मैदानों से आये थे ... इनमे अधिकाशत गौड़ ब्राह्मण ही थे.... लेकिन पहाड़ी जलवायु तथा खस राजा के प्रभाव में इन गौड़ ब्राह्मणों ने मांसाहार प्रारंभ कर दिया .... जब चांदपुर का शासन राजपूत क्षत्रिय जमाई के पास आया तो उसने अपने साथ आये नए गौड़ ब्राह्मणों को पुरोहिती तथा रसोई का कार्य दे दिया ... यह नागपुर के ब्राह्मणों के लिए अपमान था लेकिन उस समय क्योंकि राजा विजय अभियान में निकला हुआ था , तथा नागपुर के खस क्षत्रिय सेनापतियों का वर्चस्य अभी भी बरक़रार था इसलिए नागपुरिया ब्राह्मणों के विद्रोह को अधिक तवज्जो नहीं मिली ..... नौटी नाम के गाँव में बसे नए राजपुरोहित गौड़ ब्राह्मणों ने नौटियाल नाम ले लिया तथा नागपुरिया गौड़ ब्राह्मणों के साथ विवाह सम्बन्ध बनाने से इंकार कर दिया ... नौटियाल ब्राह्मण नागपुरिया ब्राह्मणों को गौड़ नहीं मानते थे तथा मांसाहार के साथ साथ दुमागी ( खस क्षत्रियों से अंतर जातीय विवाह ) का आरोप भी लगाते थे .... लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी नए गौड़ ब्राह्मण चांदपुर गढ़ में पुराने नागपुरिया ब्राह्मणों का न तो मान कम कर सके न ही उनकी पुरोहिताई को हड़प सके ..... इसका एक बड़ा कारण समृद्ध नागपुर पट्टी थी जो चांदपुर गढ़ का आर्थिक आधार थी....
कालांतर में राजधानी को देवलगढ़ तथा बाद में श्रीनगर ले जाया गया ...वैसे श्रीनगर ६ वीं शताब्दी के पूर्व से ही प्रमुख क्षेत्र था , लेकिन इसका महत्त्व ब्रह्मपुर के व्यापारिक राजधानी के रूप में अधिक था ..... इस समय नौटियाल ब्राह्मण तथा उनके सम्बन्धी ( जिनके साथ उन्होंने विवाह सम्बन्ध बनाये ) देवलगढ़ और श्रीनगर में प्रमुख स्थान पर आ गए ... यही नहीं स्थानीय ब्राह्मण जातियों के साथ विवाह संबंधों के द्वारा उन्होंने श्रीनगर क्षेत्र में भी अपना प्रभाव जमा लिया ... इसी काल के आस पास श्रीनगर क्षेत्र में कब्याकुंज ब्राह्मणों का उदय होता है और चौथोकी ब्राह्मणों ( डोभाल ,बहुगुणा , उनियाल तथा डंगवाल ) तथा गढ़वाल के एकमात्र कायस्थ ब्राह्मणों नैथानियों का प्रभाव श्रीनगर में बड़ने लगता है ..... नागपुर की पुराणी गौड़ ब्राह्मण जातियों ( बेंजवाल , किमोठी , मैकोटी , सिलवाल इत्यादि) का राजा के दरबार में प्रभाव समाप्त प्राय हो जाता है ....
श्रीनगर की राजनीती में बाहर से व्याह कर आई रानियों तथा उनके राजपूत भाइयों का ही समय समय में प्रभाव रहा ... ब्राह्मण जातियों में नौटियाल ब्राह्मण अभी भी राजपुरोहित थे , तथा उनके द्वारा अपने सम्बन्धियों को राजा की रसौई का कार्य सौंपा गया .... चौथिकी ब्राह्मणों ने मंत्रिपदों पर अधिकार जमा लिया तथा नैथानियों का सचिवालय पर एकाधिकार लम्बे समय तक रहा ..... रसोई सँभालने वाले ब्राह्मणों ने स्वयं को रसोड़ा ( बाद में सारोला ) नाम से पुकारना शुरू कर दिया... श्रीनगर दरबार में हुआ ये विभाजन धीरे धीरे नागपुर पट्टी के सामाजिक संबंधों को बिगाड़ने लगा ....सामाजिक कार्यों में सारोला ब्राह्मणों ने भात का बहिष्कार करना प्रारंभ कर दिया ....राजदरबार में प्रभाव होने तथा नागपुर की सम्पन्नता के कम होने के कारन राजपूत तथा खासों ने भी धीरे धीरे सरोलों के इस स्वघोषित अधिकार को मान्यता देना प्रारंभ कर दिया .... इससे नागपुरिया ब्राह्मणों के सामाजिक अधिकारों में भी कमी होने लगी .... यही नहीं सारोला ब्राह्मणों ने सारोला तथा गंगाडी नाम दे कर इस विभाजन को स्पष्ट कर दिया .... ((( इसका एक कारन सरोलाओं का ऊँचे पर्वतों में बसना तथा एनी ब्राह्मणों का गंगा के किनारे बसना था ) ...
नागपुरिया ब्राह्मणों ने इस अपमान को गंभीरता से लिया तथा अपने भात को अलग कर दिया .. सरोलों के प्रतिकार में इन्होने अपना नाम निरोला दिया ... नागपुर पट्टी में धीरे धीरे निरोला ब्राह्मणों के सम्मान में सारोला ब्राह्मणों ( रतुडा इत्यादि के निवासियों ) से अधिक इजाफा भी हुआ ,,,,,,लेकिन राजगुरु नौटियाल द्वारा बद्रीनाथ की पंडा बंटाई को अपने ही सगे सम्बन्धियों के बीच बाँटने का काम भी हुआ ... जिसने इन संबंधों को अधिक जटिल बना दिया ... यही नहीं राजगुरु नौटियाल द्वारा बद्रीनाथ के प्राचीन खस पंडितों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर उन्हें भी सारोला चारी दी गयी...
नागपुर के निरोला-गंगाडी आज भी इस प्राचीन घटना के कारन अंतर-वैवाहिक संबंधों को पूर्णत नियंत्रित करते हैं .... इन जातियों की सूची निम्नलिखित है --
1) गौड़ निरोला ब्राह्मण --- किमोठी , सेमवाल , दर्मवॉर , मंगवाल , खौली , थालवाल ,धमक्वाल , जम्लागी , बरम्वाल , गर्सरा , कंडारी , बमोला , संगवाल ,पोल्दी , मिस्सेर्स
२) द्रविड़ निरोला ब्राह्मण -- मैकोटा , थलासी
३) कान्यकुब्ज निरोला ब्राह्मण -- बैंजवाल , कांडयाल , द्याल्खी
४) कोरंकता निरोला ब्राह्मण -- सिलवाल
५) सारस्वत निरोला ब्राह्मण -- पुरोहित , फलाटा ((( जम्मू के शैव संप्रदाय या कौल संप्रदाय )
६) कुमोनी जोशी निरोला ब्राह्मण -- गुग्लेता
इन अधिकांश जातियों के मूल स्थान विवादस्पद हैं , इसका एक कारन इनका सबसे पहले मैदान से पहाड़ में पहुचना रहा होगा ... नागपुर की समृद्ध पट्टी में इन्होने अपना विस्तर किया .. और कालांतर में राजसत्ता से वंचित हुए होंगे ...
चांदपुर गढ़ के समय राजपूत जमाई राजा के साथ आये गौड़ ब्राह्मणों ने पुराने ब्राह्मण मंत्रियों की जगह ले ली .... ये पुराने ब्राह्मण मंत्री पूर्व में मैदानों से आये थे ... इनमे अधिकाशत गौड़ ब्राह्मण ही थे.... लेकिन पहाड़ी जलवायु तथा खस राजा के प्रभाव में इन गौड़ ब्राह्मणों ने मांसाहार प्रारंभ कर दिया .... जब चांदपुर का शासन राजपूत क्षत्रिय जमाई के पास आया तो उसने अपने साथ आये नए गौड़ ब्राह्मणों को पुरोहिती तथा रसोई का कार्य दे दिया ... यह नागपुर के ब्राह्मणों के लिए अपमान था लेकिन उस समय क्योंकि राजा विजय अभियान में निकला हुआ था , तथा नागपुर के खस क्षत्रिय सेनापतियों का वर्चस्य अभी भी बरक़रार था इसलिए नागपुरिया ब्राह्मणों के विद्रोह को अधिक तवज्जो नहीं मिली ..... नौटी नाम के गाँव में बसे नए राजपुरोहित गौड़ ब्राह्मणों ने नौटियाल नाम ले लिया तथा नागपुरिया गौड़ ब्राह्मणों के साथ विवाह सम्बन्ध बनाने से इंकार कर दिया ... नौटियाल ब्राह्मण नागपुरिया ब्राह्मणों को गौड़ नहीं मानते थे तथा मांसाहार के साथ साथ दुमागी ( खस क्षत्रियों से अंतर जातीय विवाह ) का आरोप भी लगाते थे .... लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी नए गौड़ ब्राह्मण चांदपुर गढ़ में पुराने नागपुरिया ब्राह्मणों का न तो मान कम कर सके न ही उनकी पुरोहिताई को हड़प सके ..... इसका एक बड़ा कारण समृद्ध नागपुर पट्टी थी जो चांदपुर गढ़ का आर्थिक आधार थी....
कालांतर में राजधानी को देवलगढ़ तथा बाद में श्रीनगर ले जाया गया ...वैसे श्रीनगर ६ वीं शताब्दी के पूर्व से ही प्रमुख क्षेत्र था , लेकिन इसका महत्त्व ब्रह्मपुर के व्यापारिक राजधानी के रूप में अधिक था ..... इस समय नौटियाल ब्राह्मण तथा उनके सम्बन्धी ( जिनके साथ उन्होंने विवाह सम्बन्ध बनाये ) देवलगढ़ और श्रीनगर में प्रमुख स्थान पर आ गए ... यही नहीं स्थानीय ब्राह्मण जातियों के साथ विवाह संबंधों के द्वारा उन्होंने श्रीनगर क्षेत्र में भी अपना प्रभाव जमा लिया ... इसी काल के आस पास श्रीनगर क्षेत्र में कब्याकुंज ब्राह्मणों का उदय होता है और चौथोकी ब्राह्मणों ( डोभाल ,बहुगुणा , उनियाल तथा डंगवाल ) तथा गढ़वाल के एकमात्र कायस्थ ब्राह्मणों नैथानियों का प्रभाव श्रीनगर में बड़ने लगता है ..... नागपुर की पुराणी गौड़ ब्राह्मण जातियों ( बेंजवाल , किमोठी , मैकोटी , सिलवाल इत्यादि) का राजा के दरबार में प्रभाव समाप्त प्राय हो जाता है ....
श्रीनगर की राजनीती में बाहर से व्याह कर आई रानियों तथा उनके राजपूत भाइयों का ही समय समय में प्रभाव रहा ... ब्राह्मण जातियों में नौटियाल ब्राह्मण अभी भी राजपुरोहित थे , तथा उनके द्वारा अपने सम्बन्धियों को राजा की रसौई का कार्य सौंपा गया .... चौथिकी ब्राह्मणों ने मंत्रिपदों पर अधिकार जमा लिया तथा नैथानियों का सचिवालय पर एकाधिकार लम्बे समय तक रहा ..... रसोई सँभालने वाले ब्राह्मणों ने स्वयं को रसोड़ा ( बाद में सारोला ) नाम से पुकारना शुरू कर दिया... श्रीनगर दरबार में हुआ ये विभाजन धीरे धीरे नागपुर पट्टी के सामाजिक संबंधों को बिगाड़ने लगा ....सामाजिक कार्यों में सारोला ब्राह्मणों ने भात का बहिष्कार करना प्रारंभ कर दिया ....राजदरबार में प्रभाव होने तथा नागपुर की सम्पन्नता के कम होने के कारन राजपूत तथा खासों ने भी धीरे धीरे सरोलों के इस स्वघोषित अधिकार को मान्यता देना प्रारंभ कर दिया .... इससे नागपुरिया ब्राह्मणों के सामाजिक अधिकारों में भी कमी होने लगी .... यही नहीं सारोला ब्राह्मणों ने सारोला तथा गंगाडी नाम दे कर इस विभाजन को स्पष्ट कर दिया .... ((( इसका एक कारन सरोलाओं का ऊँचे पर्वतों में बसना तथा एनी ब्राह्मणों का गंगा के किनारे बसना था ) ...
नागपुरिया ब्राह्मणों ने इस अपमान को गंभीरता से लिया तथा अपने भात को अलग कर दिया .. सरोलों के प्रतिकार में इन्होने अपना नाम निरोला दिया ... नागपुर पट्टी में धीरे धीरे निरोला ब्राह्मणों के सम्मान में सारोला ब्राह्मणों ( रतुडा इत्यादि के निवासियों ) से अधिक इजाफा भी हुआ ,,,,,,लेकिन राजगुरु नौटियाल द्वारा बद्रीनाथ की पंडा बंटाई को अपने ही सगे सम्बन्धियों के बीच बाँटने का काम भी हुआ ... जिसने इन संबंधों को अधिक जटिल बना दिया ... यही नहीं राजगुरु नौटियाल द्वारा बद्रीनाथ के प्राचीन खस पंडितों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर उन्हें भी सारोला चारी दी गयी...
नागपुर के निरोला-गंगाडी आज भी इस प्राचीन घटना के कारन अंतर-वैवाहिक संबंधों को पूर्णत नियंत्रित करते हैं .... इन जातियों की सूची निम्नलिखित है --
1) गौड़ निरोला ब्राह्मण --- किमोठी , सेमवाल , दर्मवॉर , मंगवाल , खौली , थालवाल ,धमक्वाल , जम्लागी , बरम्वाल , गर्सरा , कंडारी , बमोला , संगवाल ,पोल्दी , मिस्सेर्स
२) द्रविड़ निरोला ब्राह्मण -- मैकोटा , थलासी
३) कान्यकुब्ज निरोला ब्राह्मण -- बैंजवाल , कांडयाल , द्याल्खी
४) कोरंकता निरोला ब्राह्मण -- सिलवाल
५) सारस्वत निरोला ब्राह्मण -- पुरोहित , फलाटा ((( जम्मू के शैव संप्रदाय या कौल संप्रदाय )
६) कुमोनी जोशी निरोला ब्राह्मण -- गुग्लेता
इन अधिकांश जातियों के मूल स्थान विवादस्पद हैं , इसका एक कारन इनका सबसे पहले मैदान से पहाड़ में पहुचना रहा होगा ... नागपुर की समृद्ध पट्टी में इन्होने अपना विस्तर किया .. और कालांतर में राजसत्ता से वंचित हुए होंगे ...
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