Friday 8 December 2017

गढ़वाली संगीत में एक नया मुकाम

"...मित्र पाण्डवास... अपने अल्प ज्ञान से यही कहूँगा आपने हमें..हमारी पूरी उत्तराखंड सभ्यता को अंतर्राष्ट्रीय मंच में प्रतिष्ठापित करने की और पहला कदम बड़ा दिया है ..आपने हमारे पुरखों की सम्पदा को उत्कृष्ठ और नवाचार के रूप में प्रस्तुत कर एक अभूतपूर्व कार्य किया है ... मुझे लगता है सभ्यता के प्रवाह में जब बहुत सा पानी अलकनंदा में बह चूका होगा तो आपके संघर्ष और प्रयासों को आने वाली पीढियां अपनी धरोहर के रूप में संजोयेंगी और इस पर गर्व करेंगी .....कोटी कोटी नमन ऋषि पाण्डवास " --- गौरव नैथानी



ये रचना ये कला जैसे ही सुनी मै बैठे बैठे ही कुणाल डोभाल के साथ केदारनाथ यात्रा मार्ग पर हुई चर्चा में वापस डूब गया ... जो शब्द उसने कहे थे ....जो उसका गढ़वाली और गढ़वाली संगीत के साथ जुडाव है ...उसका दृष्टिकोण है ...जो उसने मुझे शब्दों में बताया था और जिन शब्दों से मै रोमांचित हो गया था ... आज इस नयी प्रस्तुतिकरण में डोभाल भाइयों ने वो रोमांच शब्दशः प्रस्तुत कर दिखा दिया कि पहाड़ी बादल सिर्फ गरजते नहीं बरसते ही बरसते हैं ... ...
शब्द अकसर भावनाओं को सही सही व्यक्त नहीं कर सकते ...अभी यही मेरे साथ है ...Soudamini Venkatesh (मिनी) की अवाज मुझे पाण्डवास स्टूडियो के उस दिन की यादों में वापस ले गयी जब इतनी श्रेष्ठ कलाकार को जो भारत की संस्कृति से बड़े गहराइयों से जुड़ी हैं, मेने सबसे जमीन पर बैठे एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही रियाज करते देखा था ...ढोलक पर अनुज सलिल डोभाल की थिरकती अंगुलियाँ और सौदामनी की ह्रदय की गति को नियंत्रित करती आवाज ...पाण्डवास ने ये सब इस एक विडियो में पिरो दिया है...
7 मिनट के इस विडियो में भ्राता ईशान डोभाल और कुनाल डोभाल की वो कई रातें घुली हैं जो उन्होंने गढ़वाली संस्कृति और संगीत के लिए समर्पित की हैं ... ये मै महसूस कर सकता हूँ कि तमाम आलोचनाओं को साथ रख हमेशा हँसते हुए चेहरे के साथ अपने काम में लगा रहा कितना कठिन है ... लेकिन पाण्डवास ने ये कर दिखाया ...और अभी तो पहाड़ में चढाई बस शुरू हुई है ...

No comments:

Post a Comment