कैसे कहूँ सिर्फ पहाड़ नहीं छूटता
टेड़ी मेडी सड़कों से हो कर
हर मोड़ पर , हर धार पर
छूटते जाते हैं हम ,,,
छूटते हैं हम कि छूटता है
आँगन ,जंगल ,जमीन
छूटता है बचपन
और जवानी की पोटली थामे
बहते जाते हैं हम
कैसे कहूँ सिर्फ पहाड़ नहीं छूटता ...
हम छोड़ने को मजबूर
होते हैं पहाड़ ,पर सुना है
हर रात कोई चढ़ आता है
पहाड़ पर ..
चड़ते-उतरते इंसानों की
फिदरत पहचानो तुम
कहीं आंसूं है आँखों में
कहीं कुछ नजर नहीं आता ..
आज फुर्सत से बड़े ऊँचे
चढ़ आया हूँ पहाड़ में ..
इस ऊँचे भी डूबता हूँ
किसी अनजान खौफ में
कि अनजाना क्यूँ दिखता
मेरा अपना बाज़ार है
कि अनजाना क्यूँ दिखता
मेरा अपना बाज़ार है -
हर मोड़ पर , हर धार पर
छूटते जाते हैं हम ,,,
छूटते हैं हम कि छूटता है
आँगन ,जंगल ,जमीन
छूटता है बचपन
और जवानी की पोटली थामे
बहते जाते हैं हम
कैसे कहूँ सिर्फ पहाड़ नहीं छूटता ...
हम छोड़ने को मजबूर
होते हैं पहाड़ ,पर सुना है
हर रात कोई चढ़ आता है
पहाड़ पर ..
चड़ते-उतरते इंसानों की
फिदरत पहचानो तुम
कहीं आंसूं है आँखों में
कहीं कुछ नजर नहीं आता ..
चढ़ आया हूँ पहाड़ में ..
इस ऊँचे भी डूबता हूँ
किसी अनजान खौफ में
कि अनजाना क्यूँ दिखता
मेरा अपना बाज़ार है
कि अनजाना क्यूँ दिखता
मेरा अपना बाज़ार है -
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