Thursday 13 November 2014

गढ़वाली : हिंदी की उपभाषा होना स्वीकार्य नहीं !


मै प्रारंभ में ही स्वीकार्य कर देना चाहूँगा कि मै एक राष्ट्र ,एक धर्म ,एक संस्कृति ,एक भाषा का उतना ही प्रबल विरोधी हूँ जितना की एक भारत राष्ट्र संकल्पना का समर्थक ... भारत सिर्फ हमारा देश ही नहीं हमारी जरुरत है और अपने देश प्रेम का सबूत देने की में आवश्यकता नहीं समझता ...

आश्चर्य होता है जब तमाम पुराने धुराने भाषा विदो को हिंदी की व्याख्या करते सुनता हूँ ...असल ये सभी अति हिंदी के बीमार कवी होते हैं जिनका भाषा विज्ञान से कोई वास्ता नहीं होता ...मै यहाँ पर पन्त समेत उन सभी कवियों से प्रश्न करना चाहूँगा जिन्होंने गढ़वाली भाषा को हिंदी की उपभाषा बनाने पर मौन धारण कर लिया असल ये एक भाषा का अपमान था जिसका इतिहास और व्याकरण हिंदी से कई पुराना है ...ये सभी गण मान्य जन भाषा हन्ता थे ...


फोटो सौजन्य से सलिल डोभाल , पाण्डवास स्टूडियो , श्रीनगर 

मै एक हिंदी का लेखक हूँ किन्तु अपने ऊपर एक भाषा की हत्या का इल्जाम नहीं ले सकता .... मै तमाम खुले दिमाग के लेखकों से गुजारिश करता हूँ कि वे इस कुत्षित प्रयास पर मनोविचार करें और पूर्वाग्रह से परे एक बार फिर मनन करें कि कश्मीरी व्याकरण से नजदीकी रखने वाली गढ़वाली भाषा कैसे हिंदी की उपभाषा हो सकती है ... जिन महानुभावों को यह ग़लतफ़हमी है कि गढ़वाली की लीपि तथा व्याकरण नहीं है वे एक बार अपने भाषा इतिहास और व्याकरण की समझ को सुधारें क्योंकि हिंदी का इतिहास सिमटता है 200 साल के अंदर वहीँ गढ़वाली का इतिहास 1000 से भी अधिक पुराना है ...हाँ संस्कृत की उपभाषा होने में गढ़वाली को कोई समस्या नहीं क्योंकि यह सत्य है लेकिन हिंदी की दासी बनी गढ़वाली सामाजिक कलंक हैं ,भाषाई अपराध है और सीधे सीधे गुंडई है ..जिस पैमाने पर गढ़वाली को हिंदी की बोली मात्र बना दिया जाता है असल उस पैमाने में तो भारत और विश्व में कोई 20-30 भाषाओँ के अलावा भाषायें ही नहीं बचेंगी ....

जब से उत्तराखंड बना है तब से ही पहाड़ के लोगों को कुमाउनी और गढ़वाली को लेकर अनेक ख्वाब थे ...लेकिन हरिद्वार ऑफ़ उधमसिंह नगर में बैठी एक strong anti pahari लॉबी ने हमेशा  इन भाषाओँ को इनका राजकीय सम्मान वापस दिलाने के प्रयासों को विफल कर दिया ... राज्य में उर्दू को राजकीय सम्मान मिल गया लेकिन हमारी भाषा को बोली होने का दंश सहना पड़ा.. हम हिंदी का विरोध नहीं कर रहे... हम बस हमारी अस्मिता के भी सम्मान की बात कर रहे हैं ....



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