Sunday 2 November 2014

मेरे हिमालय का केंद्र : देवलगढ़

जब आप देवलगढ़ घटी में प्रवेश करेंगे तो आपको लगेगा ही नहीं कि ये जगह किसी राज्य की राजधानी होने का गौरव रख सकती है ...किन्तु इसे गढ़वाल राज्य में पंवार वंश की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है  ... लेकिन पंवार वंश के राजा अजयपाल द्वारा १५०० के आसपास जब गढ़वाल राज्य की राजधानी ,चांदपुर गढ़ी से यहाँ स्थान्तरित की गयी तो देवलगढ़ के प्राचीन इतिहास के साथ अत्यधिक छेड़ छाड़ की गयी ... राजा ने अपनी राजधानी के निर्माण के लिए यहाँ के प्राचीन भवनों और मंदिरों के खंडरों के बजे अवशेषों का उपयोग किया .. चांदपुर गढ़ी से अपनी राजधानी देवलगढ़ लाने का कारण यह रहा होगा कि देवलगढ़ उस समय राज्य के लोगों के लिए विशेष स्थान रहा होगा ... चांदपुर गढ़ी से अपनी राजधानी हटाने के पीछे यह कारण था कि पंवार वंश अपने उत्थान के समय पर राज्य के एक कोने से राज्य को नहीं चला सकता था ....इसी लिए जब अजयपाल ने क्षेत्र में अपना विस्तार करना प्रारंभ किया तो उसे एक केंद्रीय स्थल की आवश्यकता पड़ी ... एक नए स्थान पर राजधानी बनाना राजा के लिए उचित फैसला नहीं होता अत पहाड़ में प्राचीन काल से ही आस्था के केंद्र रहे देवलगढ़ को इस हेतु चुना गया ...


देवलगढ़ का मंदिर कत्यूर शैली का बना है अर्थात पंवार वंश की राजधानी होने का गौरव इसे जरुर प्राप्त है किन्तु इसके निर्माता अवश्य ही खस ( शक) अथवा कत्यूर थे ... वैसे मैं अपने विचार से इस क्षेत्र को खस राजाओं का केंद्र अधिक पाता हूँ ...क्योंकि इस क्षेत्र के आसपास आज भी आपको स्वयं को खस कहने वाले लोग मिल जायेंगे ... ये बात किसी से छुपी नहीं है कि गढ़वाल का क्षत्रिय अपने को राजपूत कहलाना अधिक पसंद करता है बजाए खस के ..जबकि पहाड़ के डीएनए में खस (शक) जाती का डीएनए बड़े गहरे से जुड़ा होना चाहिए ...इस क्षेत्र में हूणों के राज होने पर मुझे आपत्ति है ...क्योंकि अगर इस क्षेत्र में हूणों का राज्य होता तो अवश्य ही ये क्षेत्र आज भी तिब्बती मूल के लोगों का होता ...क्योंकि ये मानना बड़ा ही कठिन है कि हूणों ने इस उपजाऊ क्षेत्र को छोड़ तिब्बत में रहना पसंद किया हो .. हाँ शकों और हूणों अथवा कुनिंदों और हूणों के बीच व्यापार के प्राचीन चिन्ह आज भी गढ़वाल राज्य में देखने को मिल जाते हैं ...



























देवलगढ़ क्षेत्र को अभी तक दूसरे क्षेत्रों के इतिहास के पूरक के रूप में ही देखा गया है ....लेकिन मेरा मानना है अगर यहाँ खुदाई की जाती है तो हमें मानव के प्राचीन बसावट के चिन्ह मिलने के भी आसार हैं .... इस पोस्ट में मई इतनी ही जानकारी दे रहा हूँ ... आगे इस विषय पर विस्तार पर लिखूंगा ...

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