Tuesday 12 December 2017

अष्ट क्षत्रिय :: प्रथम नागवंश ( नेगी )


गढ़वाल का इतिहास क्षत्रियों की तलवारों से बना है .... भले यह इतिहास इतना धुंधला है कि  आज कुछ भी ३६० डिग्री के दृष्टिकोण से नहीं कहा जा सकता ..लेकिन इतिहास के बिखरे पन्नों से कुछ कहानियां निकलती हैं, हम उसमे अंश खोज रहे हैं ...


प्राचीन शास्त्रों और महाकाव्यों में हिमालय में राज्य करने वाली नागवंशी जनजाति का उल्लेख होता है ....इस नागवंशी जाति का मूल सही से बताना मुश्किल काम है ...  क्योंकि हम बात कर रहे हैं मोर्य काल से पहले कि ... मेरा विश्वास है कि कालसी का अशोक का शिलालेख इस बात की और संकेत करता है कि  एक स्थाई राज्य इस क्षेत्र में था ... अगर राज्य था तो राजा रहे होंगे ..... राज करने वाली पूरी जाति रही होगी .... महाभारत में बाणासुर का उल्लेख है .... बाणासुर एक असुर था ... निश्चित ही आर्यों तथा असुरों के बीच इस क्षेत्र में युद्ध हुए ... और विजय आर्य ही रहे ... असुरों के बेटी उखा का मंसिर इस बात का प्रमाण है ... असुरों को हराने के बाद जिस आर्य जाति ने इस क्षेत्र में राज्य किया वह थी नाग जाति ... ये नाग जाति उस काल से आज तक अपना अंश इस क्षेत्र में लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी आगे सौंप रही है ... हाँ आज स्वयं को मैदानी कहने की दौड़ में नागवंशी स्वयं को नागवंशी कहने में हिचकते हैं , और कई बार नाराज भी हो जाते हैं ...


असल में गढ़वाल क्षेत्र में शकों ( खासों )  के आने से पूर्वा नागों एकक्षत्र राज्य था ... नागों में कृष्ण की पूजा नाग के अवतार में की जाती थी ,.. सेमुमुखेम जैसे नाग मंदिर आज भी उस प्रथा के अंश हैं ....वर्तमान में नेगी जाति की कुछ उपजातियों में हम नागवंशी मूल को प्राप्त कर सकते हैं ... जब शक इस क्षेत्र में आये तो उन्होंने यहाँ के पूर्व जाति के कुछ अधिकारों को ज्यूँ का त्यूं स्वीकार किया ... शको ने यह कार्य पूरे भारत में किया ... क्योंकि नागो में ब्राह्मणों की व्यवस्था नहीं थी तथा पूजा कार्य स्वयं नाग जाति द्वारा ही किया जाता था अत  नागों में क्षत्रिय ब्राहमण भेद नहीं था ... नागवंशी गढ़वाल में भेद मात्र आर्य तथा द्रविड़ ( असुर ) जनजाति का रहा होगा ....
शकों ने पंडा प्रथा का यहाँ  प्रचलन किया ... तथा क्षत्रिय खस के साथ साथ ब्राह्मण खश भी अस्तित्व में आये ... नागवंशी लोगों की संस्कृति में शकों ने हस्तक्षेप नहीं किया तथा उनके विशेषाधिकारों को बरक़रार रखा ...  कालांतर में विवाह सम्बन्ध भी हुए होंगे ...



राजा कनक पाल के साथ जब मैदानी राजपूत आये तो उन्होंने स्वयं खस क्षत्रियों से भिन्न पाया ...इसका एक कारन दोनों के मूल स्थानों में अंतर था ...खस मध्य एशिया की एक जनजाति का अंश थे तो राजपूत आर्यों का ...  लेकिन नागों का मूल आर्य होने के कारन बाहरी राजपूतों ने नागों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये...इसका एक और कारन यह था कि नागों को खसों के वक़्त से ही विशेषाधिकार प्राप्त थे ...  विशेषाधिकार प्राप्त जाति के साथ सम्बन्ध बनाये बिना बाहरी राजपूतों के लिए इस क्षेत्र में स्थापित होना मुश्किल था ... इसलिए राजपूत क्षत्रिय राज में  भी इस प्राचीन जाति के विशेषाधिकारों को बनाया रखा गया ... कालांतर में कई राजपूत जातियां गढ़वाल में आई ... जिन्हें नेगियों के साथ विवाह सम्बन्ध के कारन नेगियों में शामिल कर लिया गया ... जम्मु , हिमाचल तथा नेपाल से भी प्राचीन नागवंशी जातियों का आगमन गढ़वाल में हुआ जिन्हें भी नेगियों में शामिल कर लिया गया ... इस प्रकार से ये नागवंशी नेगी गढ़वाल के इतिहास में सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक हो सकते हैं ...


नेगी का अर्थ ---

नेगी का अर्थ नागवंशी से नहीं है ... न ये नाग का भ्रश है ... ये भी एक संयोग मात्र है कि कई नेगी नागवंशी है ... असल में नेगी शब्द फारसी या तुर्की जुबान के नागी से निकला है .... जिसका अर्थ होता है " विशेषाधिकार प्राप्त " ..... क्योंकि नागवंशियों को पंवार राज में भी विशेषाधिकार प्राप्त थे तथा ये राज व्यवस्था के अहम् पदों पर थे , इन्हें फारसी में नागी शब्द दिया गया होगा ... जम्मू या हिमाचल में भी नागवंशी जातियों को विशेषाधिकार के कारन ही नेगी नाम दिया गया होगा .... लेकिन या सुनिश्चित है कि नेगी शब्द 1000 ad से पुराना नहीं है ... कालांतर में जब पडियार नेगी ( दिल्ली से ) , पुण्डीर नेगी ( सहारनपुर से ) गंग्वादी नेगी ( मथुरा से ) आये तो इन्हें नेगियों के सामान ही कुछ विशेषाधिकार राजमहल में प्राप्त हुए ... जिस कारन नागवंशी नेगियों से भी इनके वैवाहिक सम्बन्ध बने...तथा इन सभी करीब 30 उपजातियों ने मिल कर प्रमुख नेगी जाति का रूप लिया ..(( सभी जातियों का उल्लेख यहाँ करना कठिन है , किन्तु सभी के मूल स्थान तथा गढ़वाल आने का समय उपलब्ध है ))